डॉ. हंसा दीप

कथाकार, उपन्यासकार 

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यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में लेक्चरार के पद पर कार्यरत। 


पूर्व में यॉर्क यूनिवर्सिटी, टोरंटो में हिन्दी कोर्स डायरेक्टर एवं भारतीय विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक। 


चार उपन्यास एवं छह कहानी संग्रह प्रकाशित। 

गुजराती, मराठी, बांग्ला, अंग्रेजी व पंजाबी में पुस्तकों/रचनाओं का अनुवाद। 


प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित। 

 

सौंधवाड़ी लोक धरोहर - लोक साहित्य पर पुस्तक


भारत में आकाशवाणी से कई कहानियों व नाटकों का प्रसारण।

कई अंग्रेज़ी फ़िल्मों के लिए हिन्दी में सब-टाइटल्स का अनुवाद।

स्नेह की हल्की-सी फुहार रिश्तों को प्रस्फुटित कर देती है। 

भारतीय उच्चायोग कैनेडा में नई पुस्तकों का लोकार्पण 


कथा पाठ-पुआल की आग 

2019 में लिखी कहानी हरा पत्ता, पीला पत्ता लंबा सफर तय करके अब सुप्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिका Indian Literature में। हिन्दी में सर्वप्रथम 2019 में विभोम स्वर ने इसे प्रकाशित किया था। इसके बाद से अब तक पंजाबी, मराठी, और बांग्ला पत्रिकाओं में अनुवाद प्रकाशित हुआ साथ ही कई साझा संग्रहों में इसे स्थान मिला। 


हंसा दीप के उपन्यासों पर पुस्तक

दीपक पांडेय, नूतन पांडेय 


छठा कहानी संग्रह-2023

चेहरों पर टँगी तख्तियाँ 

हंसा दीप 

Prestigious Journal, The Piker Press में कहानी सोविनियर का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित

Link - https://www.pikerpress.com/article.php?aID=9626 

दिसंबर, 2022 - प्रकाशन काँच के घर समीक्षा - पाखी, दिसंबर, 2022 अंक

नवंबर, 2022 - प्रकाशन-केसरिया बालम अब मराठी पाठकों के लिए उपलब्ध - पाखी पत्रिका में काँच के घर की समीक्षा 


ई-अभिव्यक्ति - तीन भाषाओं में कहानी टूक-टूक कलेजा 

सद्य प्रकाशित पुस्तकें 

लोक साहित्य 

उपन्यास 

उपन्यास 

सद्य प्रकाशित रचनाएँ 

Setu Magazine

टूक-टूक कलेजा , अंग्रेजी और मराठी में अनूदित 

Coffee mein Cream - Kahaani

ईअभिव्यक्ति - दीपावली विशेषांक

कहानी - आसमान 

"उसका रंगों का चयन मेरे शब्दों में बदलकर बरबस ही संतुष्टि दे रहा था। मैं उस बच्ची के लाल, पीले, नीले, हरे, बैंगनी रंगों में डूबकर पेंसिल के स्याह रंग को विलुप्त होता देख रही थी। कागज के रंगों से उसकी आँखों की झिलमिलाहट का तालमेल कुछ ऐसा था जैसे आसमान के तमाम तारे-सितारे उसकी पलकों पर जगमग कर रहे हों।" 

कहानी टूक-टूक कलेजा पर पाठकों के कई पत्र 

काँच के घर उपन्यास - भारतीय ज्ञानपीठ एवं वाणी प्रकाशन  


काँच के घर में रहने वाले दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारते। लेकिन अब वे काँच के घर नहीं रहे जिनमें झाँक कर देख सकते हैं कि अंदर क्या हो रहा है। काँच की परिभाषा बदल गयी थी। बहुत कुछ बदला था। सब अपनी सुविधाओं के अनुसार चीजें बदल रहे थे। लोग सिर्फ समूहों में ही नहीं बँटे थे, उनके दिल भी बँट गए थे। किसी बँटी विरासत की तरह, जो थी तो सही पर बँटते-बँटते नाम भर की रह गयी थी। एक-एक करके अनेक हो सकते थे पर एक-अकेले का सुख उन सबके लिये बहुत था। 

- काँच के घर से 

शिवना प्रकाशन