कहानी-संग्रह

चश्मे अपने-अपने
[कहानी संग्रह]
प्रथम संस्करण : 2007
प्रकाशक : डायनेमिक पब्लिकेशन्स (इंडिया) लि.
“चश्मे अपने-अपने” डॉ. हंसा दीप की कहानियों का प्रथम संकलन है। यह संवेदनाओं का, अनुभूतियों का और उनके चेतन अवलोकन का एक जीवंत दस्तावेज है। एक ऐसा गुलदस्ता है जिसमें मानवीय रिश्तों के ताजा गुलाब भी हैं और सच्चाइयों के पैने काँटे भी। हर कहानी जनसामान्य के जीवन का दर्पण बन गयी है। पाठक को हर कहानी में अपना चेहरा दिखाई देता है और वह कथ्य के साथ जुड़ता चला जाता है।
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प्रवास में आसपास
[कहानी संग्रह]
प्रथम संस्करण : 2019
प्रकाशक : शिवना प्रकाशन
‘प्रवास में आसपास’ की कहानियों में विदेशी झलक के साथ अपनी माटी की गंध भी मौजूद है। लिखते हुए कथाकार के मन की उड़ान एक प्रवासी पक्षी की तरह अपने घर लौटकर जरूर आती है, जहाँ से पहली उड़ान भरी थी। मानवीय संवेदना देश-विदेश की सीमाओं से परे होती है। विदेशी धरती पर घटित होती इन कहानियों में भारतीयता का पुट भरपूर है। ये कहानियाँ अपनी संवेदना और सामाजिक सरोकारों के चलते मर्म को छू लेती हैं। ये रोचक कहानियाँ पाठकों को बांध लेने की पर्याप्त क्षमता रखती हैं। इनमें पात्रों के परिवेश, मनोदशाओं और स्थितियों का सजीव चित्रण है। कहानियों के पात्र छोटे बच्चे, डॉक्टर, युवा-वृद्ध, विभिन्न सामाजिक रिश्तों को निभाते स्त्री-पुरुष, बेबी सीटर, पंडित, सिक्योरिटी गार्ड आदि विभिन्न वर्गों से जुड़े हैं।
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शत प्रतिशत
[कहानी संग्रह]
प्रथम संस्करण : 2020
प्रकाशक : किताबगंज प्रकाशन
शत प्रतिशत कहानी संग्रह की कहानियों में प्रेम और मानवता की तलाश साफ नजर आती है। प्रेम के अनेक रूप-रंग इन कहानियों में दिखाई देते हैं। सामाजिक सरोकारों से जुड़ी इन कहानियों में विसंगतियों, विडंबनाओं के चित्रण के साथ इन स्थितियों के लिए हल्का-सा तंज भी दृष्टिगोचर होता है। पात्र अपनी मनोग्रंथियों से बखूबी जूझते हैं। उनकी जिजीविषा विस्मित करती है। कहानियों को धैर्यपूर्वक रचा गया है। बोलचाल की मुहावरेदार, सहज-सरल और प्रांजल भाषा पाठक को अपने साथ बहा ले जाती है। संग्रह में कुल 17 विविधवर्णी कहानियाँ हैं।
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बिंदास हवा
[कहानी संग्रह]
प्रथम संस्करण : 2020
प्रकाशक : शोपिजेन
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अपनी-अपनी ख़ामोशी
[कहानी संग्रह]
प्रथम संस्करण : 2020
प्रकाशक : नॉटनल
उपन्यास

बंद मुट्ठी
प्रथम संस्करण : 2017
द्वितीय सजिल्द संस्करण: 2018
शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित
मानव मन के अंधेरे कोनों की पड़ताल की एक यात्रा है यह उपन्यास। यह मन के पानी में गहरे जमी हुई उस तलछट तक पहुँचता है, जहाँ तक हमारी दृष्टि सामान्यत: नहीं पहुँचती है। यह उपन्यास बताता है कि कई बार केवल परंपराओं के नाम पर हम अपने जीवन का कितना कुछ खो देते हैं। खो देते हैं उस सुख को, जो हमारे हिस्से में आया था। जिसे हमें जीना था, जिससे हमें अपनी झोली भरनी थी। यह उपन्यास वास्तव में उन्हीं खोए हुए सुखों की कहानी है। नायिका तथा उसके माता-पिता के बीच का द्वंद्व असल में सुखों के इसी संघर्ष की कथा है।
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बंद मुट्ठी
गुजराती अनुवाद – पंकज त्रिवेदी
प्रथम संस्करण – 2020
માનવીના મનના અંધારિયા ખૂણાની તપાસની એક યાત્રા એટલે આ નવલકથા. એ મનની પ્રવાહિતાના ઉંડાણમાં જામેલા તળ સુધી પહોંચાડે છે, જ્યાં સુધી આપણી દૃષ્ટિ સામાન્ય રીતે નથી પહોંચતી. આ નવલકથા બતાવે છે કે ઘણીવાર કેવળ પરંપરાઓને નામે આપણે આપણા જીવનમાં કેટલું બધું ગુમાવી બેસીએ છીએ. ગુમાવી દઇએ છીએ એ સુખને, જે આપણા હિસ્સામાં આવ્યું હોય છે. જેને આપણે જીવવાનું હતું, જેમાં આપણે આપણી ઝોલી ભરી લેવાની હતી. લેખિકાએ ખૂબ કુશળતા સાથે આ વાતનું નવલકથામાં ચિત્રણ કર્યું છે. આ નવલકથા હકીકતમાં એ જ ખોવાયેલા સુખોની કથા છે, જેને આપણે આપણી જ ભૂલોથી ખોઈ દેતા હોઇએ છીએ. નાયિકી તથા એનાં માતા-પિતા વચ્ચેનું દ્વંદ્વ ખરેખર તો એ સુખની સંઘર્ષ કથા છે.
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कुबेर
प्रथम संस्करण: 2019
द्वितीय संस्करण: 2019
शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित
उपन्यास कुबेर कुछ मायनों में विशिष्ट है। इस उपन्यास को दो जमीनों को, दो सभ्यताओं को, बाजार की गलाकाट स्पर्धाओं और मानवीय स्पर्शों को, गरीबी और अमीरी के स्तरों को किसी आंतरिक पीड़ा, कुछ बड़े संकल्प और तकनीक पर टिके निरंतर विकसित होते बाजार में अपनी जद्दोजहद को एकतान किये रहती है। यह बनावट यदि कथास्तर पर है तो बुनावट में पूर्व और पश्चिम की दुनिया का सोच भी इस उपन्यास को दृष्टिपरक बनाता है। इस उपन्यास के उत्तरार्ध में अमेरिकी जीवन और बाजार सभ्यता के कितने ही दृश्य उभरे हैं, पर इनके भीतर सारे उतार-चढ़ावों के बीच रिश्तों का संसार और तकनीक की निरंतर अनथक दौड़ का मनोविज्ञान भी जगह पाता रहा है। धरती और जीवन के इन दोनों छोरों के बीच की गहरी फाँक एक अंतहीन खाई है जिसे पाटने का मिशन ही गरीब माँ के कुबेर से न्यूयॉर्क के मल्टी कुबेर की जीवन यात्रा को उपन्यास बना देता है।
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उम्र के शिखर पर खड़े लोग
प्रथम संस्करण 2020
किताबगंज प्रकाशन
उम्र के शिखर पर हैं या शिखर पर पहुँच रहे हैं, यह मन तय करता है। यह ऐसी चढ़ाई है जिस पर चढ़ते हुए तन थकने लगता है पर मन की दृढ़ता सुनिश्चित करती है कि अभी और सक्रिय रहना है। जीवन के इस मोड़ पर खड़े कुछ लोग मौन हो जाते हैं या फिर शोर करते हैं किंतु जी भरकर जी नहीं पाते। उम्र के शिखर की ओर बढ़ते लोगों में स्वयं को शामिल करना भी एक चुनौती है। एक हरे-भरे जीवन के बाद के इस अहसास ने मुझे इस पुस्तक के प्रारूप को जन्म देने के लिये प्रेरित किया। जीवन की साँझ को स्वीकारते पात्रों की भावनाओं की मिली-जुली अभिव्यक्ति इन कहानियों के माध्यम से हुई है। कई मेरे अपने इन कहानियों में हैं, उनकी संवेदनाओं में, तकलीफों में, मैं उनके साथ खड़ी हूँ। इन्हें लिखते हुए मैंने इन पात्रों के साथ जीया है। संग्रह में कुल बारह कहानियाँ हैं।
उम्र के शिखर पर खड़े लोग
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पंजाबी में अनुवादित कहानी संग्रह:
पूरन विराम तों पहिलां
अनुवादक: डॉ. अमरजीत कौंके
प्रकाशक: प्रतीक पब्लिकेशन्स, पटियाला
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